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Friday 5 January 2018

ग़ज़ल : कुछ लोग

कुछ लोग गुनाहों के दलदल में जीते हैं।
खामोश नजारों में नश्तर पिरोते हैं।।

इमांनो मजहब से कोई काम नहीं जिनका
इंसानियत के दुश्मन गद्दारी में जीते हैं।।

गद्दारी कपट धोखा रग-रग में बहे इनके।
बात वफा की करनेवाले काट करते हैं।।

उस थाली को छेदें जो पेट भरे इनके
खूँ चूसते हैं माँ का कली अपनी कुचलते हैं।।

नमकहरामी की हद की क्या बात करें इनकी
अपने खेरख्वाह की ही पीठ में घात करते हैं।।

जितनी शानोशोकत से जीना है जी लेंगे।
आखिर तो कुत्ते की ही मौत मरते हैं।।