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Thursday 26 April 2018

आसाराम जी को मृत्यु पर्यंत कारावास की सजा।

मशहूर संत आसाराम जी को एक वक्त था जब वह परंतत्व गुरु  सिद्ध महापुरुष बल्कि भगवान की तरह पूजनीय थे। लेकिन अब इस नए भाग्य के खेल में क्या पलटी खाई कि उन्हें बलात्कार के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई है और यह सजा मृत्यु पर्यंत तक बनी रहेगी। 
मुझे विश्वास नहीं हुआ था। तब भी जब उन्हें  इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था और  कल  भी जब यह सजा सुनाई गई है।
कारण कि 
आज भी हमारे मन मस्तिष्क में संतों मुनियों साधुओं के लिए अगाध श्रद्धा है और यह बात मानने में भी नहीं आती कि उस जैसा सिद्ध पुरुष ऐसे घिनौने कृत्य भी कर सकते हैं। 
एक आम आदमी के नाते मुझे यकीन नहीं हो पाया है और
आज भी अभी तक कोई विकल्प नहीं लगता कि वो दोषमुक्त हों । वैसे न्यायालय ने जो कुछ भी निर्णय लिया है तो उसे मैं भी सम्मानजनक मानता हूँ।  किंतु विश्वास नहीं होता है कि यह सब कुछ सत्य है। 

सुदामा क्यों दरिद्रता का पात्र बना


जय श्री कृष्ण मित्रों।  मैं कितने ही दिनों से यह सोचकर परेशान हो रहा था कि वह क्या कारण था कि  तीनों लोकों के स्वामी भगवान श्री कृष्ण के बाल सखा सुदामा जो कि संदीपन मुनि के आश्रम में एक साथ शिक्षा प्राप्त करने गये। जिनकी  दोस्ती के पवित्र रिश्ते की कहानी जगत विख्यात है।  जो कि एक पल भी एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते थे।  श्री कृष्ण भगवान चाहते तो सुदामा जैसे अपने अभिन्न मित्र को क्या कुछ नहीं दे सकते थे ।  लेकिन भाग्य का ये कैसा खेल रहा कि स्वयं भाग्य विधाता भी उनकी दरिद्रता का निवारण नहीं कर पाए और महा ज्ञानी पंडित सुदामा जी को दर दर की ठोकरें खाने को बाद्ध्य होना पड़ा। 
ॐ श्री कृष्ण गोविंद राधा वल्लभाय नमः।  का जाप कर कर के भिक्षुओं की तरह द्वार द्वार भिक्षा मांग कर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करते थे ।  कभी-कभी तो जीवन में ऐसे कई दिनों तक चलने पर भी कहीं से कोई भीख नहीं मिल पाती थी। कुटिया जर्जर हालत में थी तो तन पर ढकने को वस्त्र भी  जगह जगह से फटे कटे होते थे।  लेकिन द्वारिका के महाराज जगत पालन करने वाले श्रीकृष्ण ने कभी भी उनके हालत पर कृपा क्यों नहीं की।
क्या कारण था या रहा होगा कि घोर अभाव में कष्टों में जी रहे अपने ही मित्र को भगवान् श्रीकृष्ण भूल गए थे।
किंतु सुदामा जी के चरित्र की यह सबसे बड़ी विशेषता थी कि  सारे कष्ट सहन कर के जीते हुए भी उनके मुख से या विचारों से अपने मित्र के प्रति कोई ग्लानि या शिकायत नहीं रही। उल्टे वह अपने घर में पत्नी और बच्चों को श्री कृष्ण के साथ अपनी मित्रता की कहानियां सुनाया करते थे।
इस तरह अनेकों वर्ष व्यतीत हो गये ।  तब एक दिन सुदामा जी की पतिव्रता पत्नी ने कहा कि बारंबार एक ही कहानी सुन कर हम तंग आ गये हैं और इस तरह से तो कोई भी लाभ होता नहीं लगता स्वामी। कब तक ऐसा ही चलता रहेगा। आप अपने मित्र के पास जाते क्यों नहीं।  बच्चों और पत्नी की बातों से और उनके हठ के कारण सुदामा जी द्वारिका जाने को तैयार हो गए।  उन्होंने श्री कृष्ण के आतिथ्य को भी प्राप्त किया और उनकी कृपा से वैभवशाली जीवन भी पाया।  मगर  मेरे मन में यह बात फिर भी 
यह बात कचोटती है कि जब उसके अपने अभिन्न मित्र को भी जीवन भर सिवाय दुःख कष्ट दरिद्रता का जीवन जीने को जिसने अकेला छोड़ दिया था तो मेरे जैसे साधारण मनुष्य को क्यों करो वो अपनी कृपा दृष्टि से निहाल करेंगे।