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Wednesday 24 June 2020
Tuesday 16 June 2020
डिग्गी कल्याण राय की चमत्कारी कथा
" जय डिगी कल्याणराय "
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कथावस्तु :- हरिओम जोशी
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दृश्य -एक
टेक्सास स्टेट अमेरिका का राज्य हौस्टन शहर स्थित लिज़ा नामक युवती को रात में सोते समय एक अद्भुत स्वप्न आया । उसने देखा एक सड़क पर बहुत अनजान जगह जहाँ कडी तपती दोपहर में भी अनेकों लोग ज़मीन पर लेटकर खडे होकर दंडवत कर रहे हैं और खडे होकर हाथ जोडकर फिर इसी क्रम में आगे बढते जा रहे हैं । हजारों की भीडभाड का दृश्य दिखाई दिया । फिर अचानक एक अद्भुत सुंदर चमचमाते वस्त्रों से सुसज्जित मूर्ति जिसकी ठोडी में एक बहुत बडा हीरा दमक रहा है । और लिजा की आँखों में उसकी चमक दिखाई दे रही है ।
सैंकडों लोग कतार में लगे उस मूर्ति के सम्मुख झुक रहे हैं । धूप दीप नैवेद्य प्रसाद वितरण कर रहे हैं ।
तभी लिजा चौंक पडी जब उसने देखा वही अति सुंदर मूर्ति उससे हाथों से आने का संकेत करती उसे बुला रही है ।
और बरबस वह उसी की ओर बढ़ती जा रही है ।
मूर्ति की आवाज़ आती है ।
" come on my child come soon I am waiting to bless you, come .
और इतना देखते ही उसकी निद्रा टूट जाती है ।
और स्वयं को अपने बेडरूम में पाकर सपने का विचार उसको बेचेन कर देता है ।
साइड में पडे अपने लेपटाप पर जब वह उस मूर्ति की इमेज देखती है तो और भी चकित रह जाती है । गूगल पर उसकी जानकारी पाकर वह तुरंत अपना टिकिट बुक करवा कर जयपुर भारत आ जाती है । वहीं से होटल मेनेजर की मदद से उसे गाइड मिल जाता है । और वह उसी मनोरम स्थान अर्थात् डिग्गी आ जाती है ।
जहाँ सपने का साकार स्वरूप उसे दिखता है ।भगवान के दर्शन कर वह वहीं कुछ समय रुक जाती है आकर्षित हो कर एक बुजुर्ग सिद्ध साध्वी विद्यादेवी के आश्रम में आश्रय लेती है ।
विद्यादेवी से इस स्थान के बारे में बताने का आग्रह करती है । तब विद्या देवी गाइड की मदद से उसको अगले दिन से प्रवचन में शामिल होने को कहती है ।
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दृश्य - दो
अगले दिन प्रवचन होते हैं । तब भाषा कनवर्टर एप के जरिये लिजा कथा की जानकारी लेती हुई आनंदित होती है । साथ ही साध्वी जी का पूरा प्रवचन रिकार्ड भी करती है।
साध्वी विद्या:- (पार्श्व स्वर से बोल रही है और दृश्य स्क्रीन पर उभर रहे हैं)
"एक बार स्वर्ग के अधिपति इंद्र का भव्य दरबार सजा हुआ था । सदैव की भाँति सभी देवगण अपने अपने सिंहासनों पर विराजमान हैं । गँधर्व गान कर रहे हैं और अप्सराएँ नृत्य कर रही हैं ।
गीत
( मधुरम् मधुरम् मुरली बाजे वीणा स्वर लहराये दसों दिशाएँ गूँज रही हैं मृदंग त्रक तिन धिन तिय धाय । पदम् परागा गीत सुहागा नादा धि गिन गाय । नृत्य लुभावन शब्द शब्द पर अभिनव दृश्य सुभाय इंद्र की अप्सरा सुभाय .....)
नृत्य
स्वर्गलोक की परम् सुंदरी अप्सरा उर्वशी क्रमबद्ध नृत्य की प्रधानता करते हुए बडे मोहक नृत्य से सभी देवों को रोमांचित कर रही थीं । मगर नृत्य करते करते ही इंद्र आदि सभी देव गण तब बडे अचंभित रह गये जब उर्वशी ज़ोर से हँसने लगी ।
कोई समझ नहीं पाया कि आमोद प्रमोद के पलों में अचांनक उर्वशी को ये क्या हो गया । बिना कारण क्यों हँस पडी ।
तभी बृहस्पति देव वरुणदेव ने पूछ ही लिया ।
बृह0 :-"* देवी उर्वशी ! अचानक इस हँसी का क्या कारण है ? "
बिना उत्तर दिये अप्सरा उर्वशी हँसती ही रही ।
वरुणदेव :- " देवी उर्वशी आप बृहस्पतीदेव के प्रश्न का उत्तर देने के स्थान पर लगातार हँस रही हैं ?
एक देव ने आवेश में आकर बोले
"यह तो सरासर देवों के गुरू का अपमान है । बताईये क्यों हँस रही हैं आप ? "
मगर उर्वशी पर कोई असर नहीं हुआ ।
आरुणदेव :- (खडे होकर इंद्र से ) महाराज इंद्रदेव आप देख रहे हैं देवी उर्वशी की उद्दंडता । ये लगातार हम सभी देवताओं का अपमान कर रही हैं ।
इंद्रदेव :- " हाँ अरुणदेव मैं देख रहा हूँ और समझ भी रहा हूँ । देवी उर्वशी बताओ आज आपकी इस उद्दंडता का क्या कारण है ?"
तीन बार इंद्रदेव ने अपना प्रश्न दोहराया तब उर्वशी हँसते हुए ही बोली ।
उर्वशी :- " महाराज क्षमा करें परंतु मुझे स्वयं नही पता मुझे क्यों यह हँसी आ रही है ?
इंद्रदेव :- बिना कारण कोई हँसी नहीं आती देवी । और आप सभी देवताओं को जानबूझकर अपमानित भी कर रही हैं लगातार सबकी अवज्ञा करती आ रही हैं ।
उर्वशी :- मैं क्या करूँ देव हँसी रोकना स्वयं मेरे वश में नहीं है । ( वो अभी भी हँस रही थी ) ।
(तभी इंद्र को क्रौध आ गया और उन्होंने दहाडते हुए कहा । ) " बस उर्वशी बहुत हो चुका । आपकी इस धृष्टता को इंद् के दरबार में अब सहन नहीं किया जा सकता । मैं आपको इसी क्षण इंद्र लोक से निष्काशित किया जाता है और मैं स्वर्ग अधिपति इंद्र आपको श्राप देता हू़ँ । आप इसी क्षण से मृत्युलोक में वास करें । उर्वशी श्राप और दंड पाकर कांपने लगी और क्षमा याचना करने लगी किंतु इंद्र ने कठोर स्वर में कहा आप
बारह वर्षों तक वास करें । यही आपका दंड है ।
श्रापित होकर उर्वशी मृत्युलोक में संतों साधुओं की सेवा करती रहीं और जब अपनी अवधि पूर्णकर वह पुनः स्वर्ग लोक में जाने की प्रसन्नता में राजा डिगवा के उपवन में नृत्य कर रही थी तब उस सादगी सी दिखने वाली परम् सुंदरी उर्वशी पर राजा डिगवा मोहित हो गया और उसके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा ।
उर्वशी ने राजा को विनयपूर्वक अस्वीकार करते हुए उसे अपनी सच्चाई बतादी और कहा वह इंद्र की अप्सरा है और उसी को उस पर अधिकार है ।
तब राजा डिगवा ने इंद्र को युद्ध की चुनौति दे डाली । वर्षोंतक इंद्रदेव के साथ युद्ध अनिर्णित रहा । तबतक उर्वशी भी स्वर्ग नहीं जा सकी थी और राजा डिगवा की ही बंदिनी बनी रही थी ।
अंत में अनेकों वर्षोंतक लडते लडते आखिर राजा परास्त हो गया । मगर उर्वशी ने मुक्त होते ही राजा को कुष्ठ रोगी हो जाने का श्राप दे डाला ।
अब राजा कोढ़ी होकर वन वन भटकता फिर रहा था । किसी नगर ग्राम में कोई उसको प्रवेश नहीं करने देता था । तभी एक दिन भूख प्यास से बेहाल राजा उन्हीं संतों के आश्रम के निकट अचेत हुआ पड़ा था । तभी भगवान कल्याण राय जी की भक्ति आराधना करते संतों की वाणी सुनकर उसे पीडा से कुछ आराम आया । संतों का दिया प्रसाद खाकर राजा कुछ सचेतावस्था में आया और वहीं रहकर कल्याणराय जी की भक्ति आराधना करता रहा । और संत आश्रम में सफ़ाई करने लगा।
तब एक दिन भगवान ने उसको स्वप्न में दर्शन दिया और अपने होने का प्रमाण देकर कहा मेरी मूर्ति जहाँ गढ़ी हुई है वहीं स्थापित करो और पूजा अर्चन करो तो तुम्हें पुनः स्वस्थ देह और सारा राजपाट मिल जाएगा ।
राजा ने वैसा ही किया और सुख प्राप्त किया ।
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