गीतकार संगीतकार हरिओम जोशी
।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
स्वावलंबी होना है , आत्मनिर्भर रहना है ।
जीवन भर गुलामी करके तो सदा दुःख सहना है ।।
ऊँच नीच की बात न करके निर्णय अब कर लेना है ।
पिंजरे का जीवन ये छोड़ मस्त गगन की में उडना है ।।
सोने का महल हो चाहे । चाँदी की हो थालियाँ ।
किसी काम का नहीं आशियाँ ग़र मिलती हो गालियाँ ।।
जितना जल्दी संभव हो अब अपना जहाँ बनाएंगे ।
स्वतंत्रता का जीवन जीकर रिश्ते सभी निभाएंगे ।।
घर कहीं परिवार कहीं रोजी रोटी का भान नहीं ।
ऐसी दुविधापूर्ण जीवनशैली का कोई समभाव नहीं ।।
भय आशंका से ग्रसित ही हम साहस खो देते हैं ।
संघर्षों से घबराकर हम पराधीन ही जीते हैं ।।
पर अब दृढ़ निश्चय करके मार्ग नया चुन लेना है ।
ईश्वर हमको बल देंगे विश्वास अटल कर चलना है ।।
जो होगा अच्छा ही होगा । अब ना डर कर जीना है ।
कार्य करते रहना है , निज धर्म निभाते चलना है ।।