atOptions = { 'key' : '9b9688a73657a99887bedf40f30c985c', 'form

Sunday 25 February 2018

भारतीय संगीत की लोकप्रीयता पर चिंतन

    भारतीय संगीत का वर्ममान कद
=====================
हरिओम जोशी : गीतकार सौगीतकार गायक  ।
जयपुर ।
---------------------------
 एक युग वो था भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रतिष्ठा विष्वस्तरीय थी । स्वामी हरिदास तानसेन गोपालनायक अमीरखुसरो से लेकर असंख्य साधकों ने इसे चमत्कार पूर्ण प्रतिष्ठा दिलवायी ।
ओर एक आज के संगीत का दौर है जो पूरी तरह पाश्चात्य रंग में रंगा हुआ है ।
और इसके चलते हमारा संगीत दूर बहुत दूर धूमिल नज़र आता है । फिल्म हो या रंगमंच रेडियो टीवी एक ज़माना था ।
रिकाॅर्ड प्लेयर और  एल पी ई पी रेकार्ड्सम केसेट्स का बहुत व्यापक व्यवसाय होता था । बाद में   टेपरिकाॅर्डर केसेट्स प्लेयर चलन में आये । फिर  VCR CASSETTES AAYIN DVD VCD  का चलन चला । और जैसे जैसे टेक्नोलोजी का विकास होता गया संगीतकारों का भी कद बढता नज़र आने लगा । किंतु आज बाजारों में कहीं भी संगीत की कोई दुकान नजर नहीं आती । क्योंकि इंटरनेट पर अब सबकुछ मुफ्त में मिल रहा है । एक अकेले मोबाइल ने कितने ही व्यवसाय निगल लिये हैं । फोटो घडी से लेकर कयी हैं जो ठंडे पडे हैं ।

No comments:

Post a Comment