[{()}] लिपिबद्ध संगीत का महत्व [{()}]
::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::;;;;;;
वाद्ययंत्र पर बजाने के लिए हमें स्वरों की जानकारी
होनी चाहिए। स्वर संकलन से ही किसी भी प्रकार के गीत की धुन तैयार होती है और इस को मोखिक या लिपिबद्ध कर के उपयोग भी किया जा सकता है।
संगीत जगत में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनकी स्वर उपयोगिता लिपि ने होने के कारण वो राग हमारे संग्रहालय में उपलब्ध नहीं हो पाये और वो लुप्त हो गये।
जैसे कि राग दीपक । अकबर के नौ रत्नों में से एक संगीत सम्राट तानसेन को कौन नहीं जानता । उन्होंने
अनेक ऐसे रागों का आविष्कार किया था जिसके प्रभाव से जड चेतन सभी को प्रभावित किया जा सकता था।
उनकी ऐसी अनेक प्रकार की रागों के आज केवल नाम रहा गये हैं। ना तो ऐसे गुरु हैं और ना ही कोई ऐसा साधक ही है । उन्होंने दरबारी मियांजी की तोडी मल्हार दीपक राग इजाद किये जो वक के साथ इतिहास में कहीं खो गये। इनका वास्तविक रूप स्वरलिपि संकलन के अभाव में लुप्त प्रायः हो चुके हैं।
इसका कारण पूछा जाए तो यह भी कहा जा सकता है कि तत्कालीन संगीतकार या तो अपनी कला की मौलिकता को गुप्त रखने के पक्षकार थे। उन्होंने आम लोगों को अपनी कला नहीं देकर अपने सीमित दायरे तक ही रखा था। दूसरे अशिक्षा भी इसका मुख्य कारण था।
BOON WORLD OF MUSIC is the best way to get chance in learning and excelling performance by providing platforms to music learners WHO really wish to earn name and fam in singing or playing INSTRUMENTS . WE WELCOME YOUR THOUGHTS AND WISHES
atOptions = { 'key' : '9b9688a73657a99887bedf40f30c985c', 'form
Wednesday 21 March 2018
संगीत में स्वरलिपि क्यों आवश्यक है ?
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
Sada suraksha hai to jeevan raksha hai ----------------------------------------------------------------- सड़क सुरक्षा है तो जीवन रक्...
-
" भारतीय संगीत " __________________________________________"":- आरंभिक संगीत के अभ्...
-
ॐ तत्सत श्री नारायण तू । पुरुषोत्तम गुरू तू ।। सिद्ध बुद्ध तू स्कंद विनायक सविता पावक तू । ब्रह्म मध्य तू यहोवा शक्ति तू । ईशू पिता प...
No comments:
Post a Comment