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Sunday, 1 April 2018

वृक्ष की व्यथा ... कहानी रचना हरिओम जोशी

मैं  एक  पृथ्वी पर रहने वाला जीव  हूँ।  मेरा जन्म इसी 🌍 धरती पर ही हुआ है ।  मुझे मनुष्यों के द्वारा  🌳 🌳 पेड़ दरख्त तरु  आदि नामों से जाना जाता है । आपको भी पता होगा कि आप जब छोटे से गांव कस्बे शहर 🌆 के बाद अत्याधुनिक सुविधाओं की ओर बढ़ते गए तो मेरी  अहमियत भी नहीं 👎 रही।  कभी मुझसे घने जंगलों में बहार हुआ करती थी। मेरी डालियों पर  पंछियों का बसेरा हुआ करता था। उन पंछियों की तरह-तरह की आवाज़ें जंगलों में मधुर संगीत 🎶 घोल देती थी।  लेकिन अब ना इतने जंगल बचे ना जंगली जानवर ना पंछी ।  सबकुछ तुम 😋 नादान इंसानों ने खत्म कर दिया है। और जो कुछ थोड़ा बहुत कुछ बचा है उसे भी खत्म कर दोगे।  

मैने तुमको क्या कुछ नहीं दिया।  फल 🌸 🌸 फूल  पत्तियाँ लकड़ी  दवाई  🏡 बनाने की इमारत बनाने की  लकड़ी। 

बदले में  तुम मनुष्यों ने मुझे क्या दिया ?  सिर्फ विनाश।  

     अब  भी  🕒 समय  है वक्त रहते मेरा विनाश रोको  वरना  आने वाली पीढ़ियों को तुम कुछ भी नहीं 👎 दे पाओगे।।।।। 

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गीत

मैं हूं वृक्ष मुझे ना काटो । काट काट कर मुझे ना बांटो ।

पंछी मेरी डाल पर बसते। चीं चीं -2 कू कू करते ।

मैं हूं वृक्ष मुझे ना काटो




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