ग़ज़ल :- आसमाँ को क्या ग़रज़ ।
जिंदगी में हर किसी की
हो खुशी मुमकिन नहीं ।
ग़म के बादल ना कभी
छाये हों मुमकिन नहीं ।।
आसमाँ पर चाँद कैसा
आसमाँ को क्या ग़रज़ ।
हो कभी उस पर असर
ये कभी मुमकिन नहीं ।।
दिल की दौलत प्यार हो
या ग़मे दिलदार हो ।
शम्मा ठंडी आँच दे
परवाने को मुमकिन नहीं ।।
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जिंदगी में हर किसी की
हो खुशी मुमकिन नहीं ।
ग़म के बादल ना कभी
छाये हों मुमकिन नहीं ।।
आसमाँ पर चाँद कैसा
आसमाँ को क्या ग़रज़ ।
हो कभी उस पर असर
ये कभी मुमकिन नहीं ।।
दिल की दौलत प्यार हो
या ग़मे दिलदार हो ।
शम्मा ठंडी आँच दे
परवाने को मुमकिन नहीं ।।
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Very nice
ReplyDeleteBht sundar hai yeh!
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