गीतकार डॉ. शिव कुमार कृत
गीत संख्या एक
११११११११११११११११११११११११११११
मर गयी एक रत्ती पे ।।
सुन ! सच सच बता कल मिलेगा ना पांच बत्ती पे ।।
१. ना मर्यादा तोडूंगी ।
ना वायदे से मुंह मोडूंगी ।
तेरी बन जाऊंगी लगा गुलाल
सतरंगी रंगोली में ,
गोविन्द बाबा का परसाद बन
जाऊंगी तेरी झोली में ।
थक गई रोज़ रोज़ कर इंतज़ार
घर की परछती पे
सच सच बता कल मिलेगा ना पांच बत्ती पे .......
२. ज़माना बदल गया है :- ,stress
चाय की ट्रे उठाकर
मुंह नहीं दिखलाऊंगी ।
जो पाया है मम्मी पापा से
उस पर ही इतराउंगी
दाग़ लगे ना जाने अनजाने
पूरा विवेक निभाऊंगी
ऐसा कुछ ना कहना कि
आये खट्टास मेरी बोली में।
बस गोविंद बाबा का परसाद बन आ जाऊंगी
तेरी झोली में ।।
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गीतकार डॉक्टर शिवकुमार ।
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गीत संख्या दो
कृष्णा सुदामा की जोड़ी अब टूट गई।
हमारी विरासत भी हमसे रूठ गई ।।
पहले कहा हुआ भी निभाते थे ।
अब लिखा हुआ भी झूठ लाते हैं ।
पहले कहा हुआ भी निभाते थे ।
अब लिखा हुआ भी झूठ लाते हैं।
तब मौन रहकर वायदे याद दिलाते थे
अब चिला चिला कर जाल में उलझा ते हैं ।
कृष्ण सुदामा की जोड़ी अब टूट गई
पहले दुखिया मुखिया के घर जाता था ।
अपनी कम जग की फिक्र बताता था ।।
अब घर-घर मुखिया आते हैं ।।
बही खातों में छिपा दर्द समझाते हैं ।
कृष्ण सुदामा की जोड़ी अब टूट गई ।।
जब हैसियत रिश्तो की जगह लेने लगे ।
अपने बन बैगाने दुहाई देने लगे ।।
बचपन का साथी पूछे कहो कैसे आना हुआ ।
वह शब्द अंगारे बन के बरसते हैं ।
कृष्ण सुदामा की जोड़ी अब टूट गई
हमारी विरासत भी हमसे रूठ गई ।
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गीत संख्या तीन
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लगता है जब मेरे तेरे मिलने की बारी आई थी ।
लिखने वाले ने फीकी स्याही से कलम चलाई थी ।।
एक पल के दीदार को तरसे ।
अंखियों से नित पानी बरसे ।
टुकड़ों में जी जी कर उम्र बिताई थी
लिखने वाले ने फीकी स्याही से कलम चलाई थी
चंद लम्हों की रही हमारे मिलन की घड़ियां ।
मीलों लंबी बिछौड़े की लड़ियां ।।
चांद की चाहत में रैन बिताई थी ।
लिखने वाले ने फीकी स्याही से कलम चलाई थी ।।
लत लग गई बैरागी बन जीने के हाल से
दिल बैठता है फिर से मिलने के ख्याल से
बिन कलम लिख लिख चिठियां पोथी बनाई थी
लिखने वाले ने फीकी स्याही से कलम चलाई थी
४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४४
गीत संख्या चार. ×
दाग लाग गयो चमकती मोती में
उंदरो घुस गयो म्हारी नयोडी धोती में
चिन्ना कि मैं दाल बनाई
लोग बोल्या यो किशो हलवाई
लेर्यां सूं आ गई म्हारी बूढ़ी ताईठ
प्रीत बेटे की भा गई
सगळी दाल का गयी
पतीलो चाटर भूख मिटाई
भूख का मार्यां जाला आग्या नैत्र ज्योति में ।
उंदरो घुस गयो म्हारी नयोडी धोती में
कुत्ता रोवे रातां में दिन में गधा रिंगता जावे
नींद कठियां सूं आवे मोटा माछर खावे ।
दारू पी गयो ताऊ बेच के म्हारी बोती ने
उंदरो घुस गयो म्हारी नयोडी धोती में
५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५५
गीत संख्या पांच ✓
Male
काल पडग्यो देश में ,
मैं जाऊं परदेस में .
Female
म्हारो हिवडो बैठ्यां जावे धनीडा
क्यों जावो परदेस में . थे क्यूं जावो परदेस में।
काल पडग्यो देश में
Male
टाबर भूख्या सोवे मायडी रातां दिन रोवे ,
आफत बन के आ गई कोरोना के भेस में ।
कोरोना के भेस में, काल पडग्यो देस में
Male
तू बाबारी जोत जगाये राखी ।
मेरे आवन री बाट जगाये राखी
पुरुषार्थ करयां पार पडेली
क्यूं जीणो कलेश में -२
काल पडग्यो देश में ।
Female
रूखी सूखी खा आपां जी ल्यांगां
राम जी री मर्जी गले लगा ल्यांगां
बेगा आइजो जीवता थे आई जो
देवता के भेस में देवता के भेस में।
काल पडग्यो देश में
Female
सूरज छिपतां दिल में आग लगेली
सूरज चढतां आवन री आस जगेली
प्हेली बन गई जिंदगी समझियो म्हारी पीडा
चंदा के संदेस में
काल पडग्यो देश में
६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६६
गीत संख्या छह ✓
टूटी कड़ियां जोड़ले भैया मां के घर को मोड़ दे भैया
हम मिलकर घर में आए मेहमानों से कतराते थे
सौ बार पुकारे अम्मा तब जाकर सामने आते थे
क्या मैं भी उसी लाइन में लग जाऊंगी
मेहमान बन कर इस पल से घर में आऊंगी
तेरी गुड़िया की खातिर इस रिवाज को तोड़ दे भैया
टूटी कड़ियां जोड़ दे भैया
घर में सजे फ्रेम में हम दोनों का चित्र है
आधा सच्च आधा झूठ भी कैसा जीवन विचित्र है
जहां की लाडली हुकुम चलाती इतराती थी
तेरे कंधों पर रखकर पांव तेरी नींद उड़ आती थी
डरी सहमी सी गुड़िया को पिंजड़े बढ़ गईबाहर छोड़ दे भैया
टूटी कड़ियां जोड़ दे भैया
चाहे तू मेरी जान भी ले ले
पुरखों की रीत से हम कैसे खेले
जिस रीति से तू है घबराई
मां भी दादी के घर ऐसे ही आई
इसी तरह इसी राह पर चलकर रीत निभाना
बार-बार ना बहना मेरी इसको दोहराना ।।
बहन : वादा कर हर पर्व पर आयेगा ।
मां के हाथों सा स्पर्श पहुंचाएगा ।।
भाई : सदैव आंखों में तेरी मूरत रहेगी
या
बंद आंखों में भी सदा तेरी सूरत रहेगी
हे वादा आज के बाद कभी आंखों से अश्रु धारा न बहेगी ।
बहन : चल अपने हाथों से ससुराल में छोड़ दे भैया
टूटी कड़ियां जोड़ दे भैया ।।
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गीत संख्या सात
[ गीत डाॅ, शिव कुमार , संगीत हरिओम जोशी ]
"मेरो भरोसो ढह गयो।"
मेरो हिवडो बीं बख्त ही बेठ गयो ।
जद वो काल आवां की कह के गयो।।
मैं सूरज लेर् यां कोन्यां भागी
बस सूरज री किरणां ई मांगी ,
काल री आस में आज गंवायो ।
रह गयी अभागी री अभागी ।।
भीगी आंख्यां सूं गालां पर बह के गयो ।
सूख्यो काजल नैणां री कोर रह गयो ।।
माई बोली सांची रीत छोड़ प्रीत में खो गई
नींद आंख्यां सूं आ गई ओ गई
कियां लुकाऊं नैना री भाषा
रहन लागी मैं तो अध जगी
मेरो भरोसो चुटकी में ईं ढह गयो ।
जद वो काल आवां की कह के गयो ।
८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८८
गीत संख्या आठ
घड़ी घड़ी कैयां फोन करूं घणो ई होवे खर्चो ।
बेरो है के तने चारू पहर बड़ी चौपड़ पे तेरो चर्चो ।।
सारो जोहरी बाजार छान्यो । तेरी ढाल सी बाल्यां कोनी पाई ।।
कियां जाऊं हाथ खाली घरां में ।
लट्ठ लेकर बैठी म्हारी लुगाई ।
पराई लुगायां का कानां ने तकतां
है गयो रामगंज थाने में पर्चो
चारू पहर ..........
मां बोली इंडेनी आ डरपोक ।
फेर कानां में बात सुझाई
मत खोटी कर जवानी ।बलन दे बालियां
पीसा भेला कर के लिया नई लुगाई ।।
सालों जौहरी बाजार .....
मैं बोल्यो सुनले माऊं
राजडरन को मोटो वकील है इंगो भाई ।
सारी उमर कोरट कचेरी मेरी कोनी हस्ती ।।
टेम बदलतां के देर लगे ।
इज्जत ढकी रेहबा दे बालियां पडेली सस्ती ।
सारो मुहल्लो करें अमरिया की लुगाई
करेगो जोबन को चर्चो ।
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युगल गीत।
Male
दिमाग़ दिल से हारा , दिल तक़दीर से ।
मैं खड़ दिमाग रांझा हारा, तुझ जैसी हीर से । हीर से
इक दिन का इश्क़ इक दिन की बाजी
रोज बजे डंडे ना मैं राजी ना तू राजी ।
मैं तुझको कहूं झूठी, तू मुझको कहे पाजी ।
अब बासी रोटी को तरसूं कभी पेट भरता था खीर से।
Female
जा ज्यादा भाव न खा जा घर का राशन ला
तेरी बना मुझको भी खिला लल्लल्ला।
पीछा छुडवाना है मुझसे तो -3 ले आ ताबीज किसी पीर से । पीर से ।
दिमाग दिल से
Male
नकली नगीना निकली तू खोटी है जज़्बात की
फरेब करती रात दिन नहीं पक्की है किसी बात की
जी करता है उल्टा लटका दूँ तुझे। उलटा लटका दूँ तुझे बांध कर जंजीर से।
गीतकार डॉ शिवकुमार । संगीतकार हरिओम जोशी
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