मेरे अवगुणा हर 
चिंता हर ले चिन्तन भरदे
इक खल प्राणी पर कृपा करदे
ना जीना पड़े यूं मर मर कर
मेरे अवगुणा हर
1.जन से सज्जन से जननायक करदे 
नि: स्वार्थ निष्फल जीने की चाह भरदे।
धन से चाहूं निर्बल होऊं -२
रहे सदा कर्मों से ऊंचा ये सर 
मेरे अवगुणा हर
2. पुरुषार्थ का धन पाऊं
ऐसी मेरी झोली भर दे 
सभ्याचार का पाठ पढूं
सदाचार का कायल करदे
जन-जन में ईश को देखूं
ऐसी दिव्य हो दृष्टि ऐसा हो मीठा स्वर
मेरे अवगुणा हर 
 
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