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Sunday, 5 February 2023

इंसानियत बड़ी है या मजहब ( शोर्ट फिल्म) कहानी।

क़दीर।    : मुस्लिम मोलवी कट्टर हिंदु विरोधी।
माही। :- युवती ।
मोहित :- माही का ब्वॉयफ्रेंड।
डॉ।    :- मोलवी साहब का चिकित्सक।
(शूटिंग लोकेशन:- 
आउटडोर :- कार एक्सीडेंट शोट+दूसरी कार में घायल मोलवी साहब को डालकर लेजाना। (इसको अस्पताल में ही डाक्टर और मोलवी साहब के बीच वार्तालाप में भी व्यक्त किया जा सकता है।) 
अस्पताल का वार्ड: - 
मोलवी साहब को होश आना।
डाक्टर के साथ बातचीत 
माही एवं मोहित की डाक्टर से बातचीत 
मोलवी साहब साहब का कंफेशन हृदय परिवर्तन और मानना कि किसी भी मजहब की बुनियाद नफ़रत नहीं इंसानियत है।
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फिल्म की कथा 
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वो एक कट्टर मुसलमान था । हमेशा हिंदुओं के प्रति शत्रुतापूर्ण विचार रखता था । महफिलों जलसों में अक्सर उसकी तक़रीरें हिंदू धर्म के लिए ज़हरीली बातों भरी होती थीं। 
ऐसे ही किसी जलसे से जब वो अकेले ही अपनी कार ड्राइव कर घर को लौट रहा था कि अचानक उसकी कार के स्टेयरिंग से उसका हाथ कंपकंपा गया। उसके सीने में तेज दर्द उठने लगा था। 
वह एक हाथ से अपने सीने के दर्द को कम करने के लिए सहला रहा था मगर कार की स्पीड अधिक होने के कारण वो कंट्रोल नहीं कर पाया और कार लड़खड़ाती हुई डिवाइडर से टकराकर पलट गई। 
ठीक उसके पीछे आती कार जो कि एक लड़की चला रही थी उसने सामने वाली कार के पलटते ही अपनी कार का ब्रेक लगा दिया। और अपने मित्र से देखने को कहा कि चलो देखते हैं कार में कौन हैं और शायद उन्हें मदद करना पड़े। 
दोनों ने उस मुस्लिम को तड़पता देखा तो तुरंत सहायता कर उसे अपनी कार में लिटा कर अस्पताल पहुंचाया।
रिसेप्शनिस्ट ने जब इलाज के लिए दो लाख जमा करने को कहा तो लड़की ने कहा "आप पैसों की चिंता मत करो इलाज जल्दी से जल्दी करो।"
लड़की ने अपने साथी की मदद से  पैसों का इंतजाम किया और तब तक रुकी रही जब तक डाक्टर ने उसे नहीं बता दिया कि वह अब ठीक है ।
मुस्लिम को जब होश आया तो उसने पूछा मुझे अस्पताल में कौन लाया? 
डाक्टर ने उन दोनों के बारे में बताया और कैसे भारी रकम फीस भरने और जल्द से जल्द इलाज करवाने की बात बताई तो मुस्लिम ने नाम पूछा ।
 दोनों ने अपने अपने हिंदू नाम बताए और वापसी की इजाजत मांगी तो मुस्लिम ने कहा "बच्चों तुम्हें तुम्हारे खर्च किए पैसे मंगवा कर देता हूं रुको। "
तो लड़की ने बोला अंकल 
"यह सब बाद में भी हो सकता है पहले आप अपनी सेहत ठीक हो जाने दीजिए।"
अब उस मुस्लिम को अपनी कट्टरता भरी बातें याद आ रही थी और खुद पर शर्म भी आ रही थी। उसको एहसास हो गया था कि इंसानियत जिंदा नहीं होती तो आज उसकी कट्टरता भी उसकी जान नहीं बख्शती। 
अब
उसने तय कर लिया कि आइंदा वो नफरती बातें नहीं करेगा । 

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