ऐसी होती है
           मां 
  सोये हुए का माथा चूमती।
  जगे हुए को हडकाती थी।
  ज़ोर ज़ोर से डांटती रहती
  सोई हुई मेरे लिए बुदबुदाती थी
  घर में निकम्मा आवारा कह
  जग को हीरे जैसा बतलाती थी
अपने हिस्से का बर्फ़ी का टुकड़ा
अपने फटे आंचल में छुपाती थी
भर पेट खिलाने के बाद भी
आखिरी कोर अपने हाथों से खिलाती थी 
बस, अब वृद्ध हो गई मां, आंखों से सब बतलाती है
सर पर रखे हाथ तो धड़कन भी आवाज़ बन जाती है। 
 
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