ग़ज़ल ::- शहर के लोग
हूँ अगर क़िस्मत से खाली , तंज कसते हैं सभी ।
मैं अजाबी हूँ खुदा या ये हैं मेरे शहर के लोग ।।
मेरे टूटे ख़्वाब इनको दे दिया करते सुकूँ ।
मेरी कश्ती ही डुबोने लगे मेरे शहर के लोग ।।
फिर भी तेरा शुक्रिया , तूने बनाया है मुझे
कामयाबी की झलक भी देखले ये शहर के लोग ।।
कोई क्या कहता है फिकर ना कर ।
ReplyDeleteअपने नमक का हक अदा कर ।