atOptions = { 'key' : '9b9688a73657a99887bedf40f30c985c', 'form

Monday, 15 September 2025

मटके का पानी

उतरी नहीं तेरी उदासी तभी तो 
नहीं घट्यो मेरे मटके का पानी 

1.हाफ हाफ कर आती थी 
अपनी लट सुलझाती थी 
फिर गट गट पानी पीती थी 
अपनी प्यास बुझाती थी 
बीत गए दिवस कई
 हिसाब जिंदगी का किए 
बिन तेरे नहीं नफा बस हानि ही हानि 
नहीं घट्यो मेरे मटकी का पानी

2. ना गले पड़ी आ गले लगी
 ना हवा चली ना मेह बरसा
 इक-इक दिन सांसों को तरसा
 उपजा सूना सूनापन बस धरती हुई बिरानी
 नहीं घट्यो मेरे मटके का पानी

3 जब खेतों में मंडराता हूं 
डर डर के घर में आता हूं
 भाभियां  करें रोज ठिठोली
कह कह कर कि, कहां गई २ देवरानी -२
नहीं घट्यो मेरे मटके का पानी ।

No comments:

Post a Comment