कटोरी में या समंदर में सदैव पानी ही कहलाया
शबनम
की शक्ल ले ली या
कभी आंसू बनकर निकला
शबनम की ले ली शक्ल कभी तो
कभी आंसू बनकर निकला
फव्वारा बनकर बह गया
लेकिन सबका मन बहलाया
कटोरी में रहा या समंदर में सदैव पानी कहलाया
पसीना बनकर उभरा बूंदे बनकर बरसा
कोई डूब गया बाढ़ में कोई कतरे को भी तरसा
पानी ने ऐसे रंग दिखाए कि बड़े बड़ों का दिल जलाया
कटोरी में या समंदर में सदैव पानी ही कहलाया
जो नहीं हुआ वह खून पानी हो कर रह गया
जब शर्म की हदें पार हुई तो इंसान पानी पानी हो गया सब जीवन की सतह पर अटॉर्नी कोई कोई ही गजरा गहराया कटोरी में या समंदर में सदैव पानी कहलाया
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