कान्हा की नटखट बाला लीला।
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बाल रूप में मोहिनी मुखमंडल छवि के स्वामी भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं से ओतप्रोत यह नृत्य नाटिका है।
भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल सखाओं के साथ गोकुल की ग्वालिनों के घर चुपके चुपके माखन चुराकर खाने गए हैं उस घर की ग्वालिन छुप कर कन्हैया और उनके सखाओं को घर में जाते देख लेती है। और माखन चुराकर खाते हुए रंगे हाथों माखन चोरी करते पकड लेती हैं । और धमका रही हैं।
ग्वालिन:- जे पकड़ लिया माखन चोर । हाय दैया जसोदा को लल्ला माखन चुरातो है।
कृष्ण:- मोको छोड़ देंओ ना
ग्वलिन:- अभी नहीं छोड़ेंगे तुमको बड़ी मुश्किल से तो पकड़ में आये हो कान्हा। माखन क्या तोहरी मैया नहीं खिलावत तो को।
कृष्ण : खिलावत है पर इत्ते से का होत। मोको जान दो ।
ग्वालिन:- तो मोसे मांग लेते चोरी करने की का जरूरत है।
कृष्ण उसकी ढीली पकड़ पाते ही छिटक कर भाग जाते हैं। और घर में जाकर छुप जाते हैं।
तभी वो ग्वालिन जसोदा को बिना कृष्ण का नाम लिए बताती है कि कोई उनके घरों से माखन चुराकर खा जाता है। ग्वालिन के जाते ही कृष्ण मैया जसोदा से आकर लिपट जाते हैं। मां समझ जाती है माखन का रसिया कोई ओर नहीं स्वयं उनका लाड़ला कान्हा ही है। और अब सफाई पेश कर रहे हैं।
और मधुर संगीतबद्ध वाणी में यह गीत अभिनीत होता है
तब
बृज की मधुर भाषा और श्री कृष्ण का अपनी मां को सफाई देकर बचने का उपाय करना इस गीत में वर्णन किया गया है। (संवाद और गीत अभिनय का अनूठा प्रस्तुतिकरण )
जबकि मां जसोदा के पास श्री कृष्ण जी की माखन चोरी की शिकायत है और वह जानती हैं कि कृष्ण झूठ बोल रहे हैं।
वो मन ही मन अपने कान्हा की बातों बहानों का आनंद ले रही है और प्रकट में अनभिज्ञ दरशा रही है।
बता मेरी मैया जसोदा ऐ ।
कैसे गोपियन पीछो छुडाऊं ।।
मोहे माखन पे ललचावे ।
मो ते बहुरंग स्वांग करावे ।
गैयन ना मोहे चरावन दे।
ऐसी कुटिल ते मुक्ति चाहूं।
बता मोरी मैया जसोदा ऐ ।
कैसे गोपियन से पीछा छुडाऊं ।।
2.
मैं ना मानूं तो धमकावै ।
तो से कह देंगी कह के डरावे ।
तन गौरी पर मन की काली ते
मैया मैं ना अब ही बतियाऊं
बता मोरी मैया जसोदा ऐ.........
मैया जसोदा:-
मेरा लल्ला बड़ा सयाना ,
मत ना अब घबराना
आवन दे कोऊ ग्वालिन को अब
ना मानूंगी बहाना
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ग्वालिनें यशोदा से शिकायत करती हैं:- इस गीत की अभिव्यक्ति के साथ।
तेरो लल्ला बड़ों रे अफंडी यशोदा सुन माई।
सारे बृज में मचायो प्रचंडी ओ री सुन माई ।
यमुना तट पर मटकी फोडत,
पल में आवे पल में दौडत ।
नटखट धूम मचाई यशोदा सुन माई।
घर घर जाकर मक्खन लूटत ।
कान्हा बाल सखा भी खावत ।
, गीत संगीत हरिओम जोशी
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