मां बहन बीवी बेटी का फ़र्ज़ निभाता है पुरुष ।।
सबके गिले शिकवों को सहता सुनता है पुरुष।
मगर कभी अपने दुःख नहीं कहता है पुरुष।।
कोशिश करता तालमेल में कभी कमी नहीं रह जाए ।
फिर भी सबकी कड़वी मीठी सुनता है ये पुरुष ।।
मां बाप या सास श्वसुर सबको मान देता वही पुरुष।
सुखी गृहस्थी रखने का धर्म निभाता यही पुरुष ।
वाणी से या आचरण से दिखता भले ही सख़्त पुरुष।
पर मन में जज्बातों से भरा हमेशा है पुरुष।।
पिता पति पुत्र भाई के रिश्तों की पहचान पुरुष।
घर समाज और देश धर्म को कीर्ति देता ये पुरुष।।
इसीलिए कहता हूं क़द्रदानों का मुकुट है पुरुष।।।।
Shaandaar sir ji keep it up
ReplyDelete