गाँव के एक छोटे से घर में, नई-नवेली दुल्हन पार्वती अपनी चौखट पर बैठी थी। सूरज ढल चुका था और आसमान में हल्का अंधेरा छाने लगा था। उसका पति, राजू, खेत पर सुबह से काम करने गया था, लेकिन अभी तक लौटा नहीं था।
पार्वती का दिल बेचैन था। उसकी आँखें बार-बार उस रास्ते पर टिक जातीं, जहाँ से राजू आता था। उसने खाना बना लिया था, लेकिन ठंडी होती रोटियों को देख उसका मन घबराने लगा। वह सोचने लगी, "कहीं कुछ अनहोनी तो नहीं हो गई? आज पहली बार वह इतने देर से क्यों आया?"
गाँव के बुज़ुर्ग लोग बता रहे थे कि खेतों में सियार देखे गए हैं। यह सुनकर पार्वती का दिल और जोर से धड़कने लगा। उसने पास की लालटेन जलाकर चौखट के बाहर रख दी ताकि राजू को रास्ता दिखे।
अचानक, दूर से हल्की सी आवाज़ सुनाई दी। पार्वती दौड़कर बाहर निकली। राजू खेतों से लौट रहा था, थका-हारा और मिट्टी से सना हुआ। पार्वती की आँखें खुशी और आंसुओं से भर गईं।
"इतनी देर क्यों कर दी?" उसने चिंता से पूछा।
राजू मुस्कुराते हुए बोला, "मौसम बदल रहा था, फसल बचाने में समय लग गया। लेकिन अब सब ठीक है।"
पार्वती ने राहत की सांस ली और उसे अंदर ले आई। दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया। चूल्हे की हल्की आंच और उनकी मुस्कान ने घर को फिर से जीवन से भर दिया।
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