और वो रिश्ता है एक पिता और पुत्री का ।
हर पिता यह जानता है कि उसकी बेटी एक दिन उसका लालन-पालन लाड़ प्यार शिक्षा दीक्षा पारिवारिक सामाजिक संस्कार सब-कुछ छोड़ कर उसके आंगन से विदा हो जाएगी ।
किंतु पिता के रूप में उसका प्यार कभी कम नहीं होता है ।
ये ओर बात है कि कोई कोई पिता ही अपना प्यार प्रकट करते हैं जबकि अधिकांश पिता अपनी बेटी को ज़माने से बचाने की भावना से ऊपर से तो कठोर दिखाई पडते है और बेटी को कहीं भी आने-जाने की सख्त मनाही करते हैं या यदि अनुमति देते भी हैं तो सुरक्षात्मक दृष्टि को ही बहुधा ध्यान में रखकर ही स्वीकृति देते हैं ।
इस लघुकथा में भी इन्हीं तमाम बिन्दुओं पर आधारित घटनाओं को दर्शाने का प्रयास किया है ।
क्यों कि बेटियों को स्वतंत्रता देना चाहिए मगर उनके मानसिक विचारों को भी इतना सुदृढ़ संस्कारित करने की आवश्यकता है कि वह कहीं ज़माने की चकाचौंध में अपना रास्ता नहीं भटक जाए ।
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